
SBI फंड्स मैनेजमेंट की ताज़ा रिपोर्ट ने अमेरिका-चीन के बीच चल रहे “व्यापार युद्ध” की तह तक जाकर ये साबित किया है कि ये केवल आयात-निर्यात का झगड़ा नहीं है। दरअसल, ये है वैश्विक इकॉनमी का बैलेंस बिगाड़ देने वाला मुकाबला, जिसमें एक तरफ है “खर्चीला अमेरिका”, दूसरी तरफ है “सेविंग चैंपियन चीन”, और कहीं बीच में “संघर्षरत भारत”।
अमेरिका बनाम चीन: दो सोच, दो सिस्टम
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और चीन की आर्थिक सोच उतनी ही अलग है जितनी सुबह की चाय और रात का कोल्ड ड्रिंक।
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चीन अपनी GDP का 42% निवेश करता है और सिर्फ 40% खर्च।
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अमेरिका बस 22% निवेश करता है, लेकिन खर्च में 68% पर निकल जाता है — यानी क्रेडिट कार्ड का राजा!
परिणाम? चीन बना निर्यात का बादशाह और अमेरिका हुआ व्यापार घाटे का महाराजा।
भारत: बीच का खिलाड़ी, पर आउटफील्ड में
भारत इस हाई-वोल्टेज मुकाबले में थोड़ा बैलेंस्ड दिखता है:
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GDP का 33% निवेश और 62% खर्च।
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लेकिन व्यापार घाटा? 275 अरब डॉलर, यानी हम भी कर्ज़ और घाटे के दलदल में धीरे-धीरे घुस ही रहे हैं।
बचत बनाम कर्ज: कौन कितने पानी में?
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अमेरिका की बचत दर केवल 18%, और ऊपर से $27.6 ट्रिलियन का विदेशी कर्ज — यानी “उधार पे जियो, स्टाइल में जियो”!
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चीन की बचत दर 43%, और कर्ज सिर्फ $2.4 ट्रिलियन।
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भारत बचत में बेहतर — 33% — और कर्ज सिर्फ $0.7 ट्रिलियन (फिलहाल!)।
टैरिफ: अमेरिका का ‘आयात पर टैक्स वाला जवाब’
इस गड़बड़ी से निपटने के लिए अमेरिका ने अपनाया टैरिफ का हथियार — “अगर तुम सस्ता बेचोगे, तो हम टैक्स लगा देंगे!”
ये रणनीति चीन को रोकने के लिए है, लेकिन सस्ते मोबाइल और लैपटॉप चाहने वालों के लिए दुखद समाचार। रिपोर्ट कहती है कि यह सब सिर्फ अस्थायी समाधान नहीं, बल्कि ग्लोबल इकॉनमी के रीसेट बटन जैसा है।
भारत का रोल क्या होगा?
भारत के पास मौका है — उत्पादन और निवेश बढ़ाने का, लेकिन जोखिम भी है — कि कहीं हम दोनों महाशक्तियों के बीच “इकॉनॉमिक फुटबॉल” न बन जाएं। अगर नीतियां सही बनीं, तो भारत अगली ग्लोबल सप्लाई चेन का हब बन सकता है।
ट्रेड वॉर से बचो, बैलेंस पर ध्यान दो!
तो अगली बार जब कोई कहे कि “चीन सस्ता देता है” या “अमेरिका बड़ा बाजार है”, तो उन्हें बताओ कि ये असली लड़ाई खर्च और निवेश की है, और भारत को समझदारी से अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे।
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